शिव के जन्म या उत्पत्ति का वर्णन वेद, पुराण और शास्त्रों में प्रतीकात्मक और रहस्यमयी रूप में किया गया है। शिव को अनादि (जिसका न आदि है, न अंत) और अजन्मा कहा गया है। वे सृष्टि, स्थिति और प्रलय के अधिष्ठाता माने जाते हैं। उनके जन्म से जुड़ी कुछ प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं:
1. शिव अनादि और अजन्मा हैं
- शिव को "अनंत" और "सनातन" कहा गया है। इसका अर्थ है कि उनका न कोई जन्म है, न कोई अंत।
- शिव का अस्तित्व ब्रह्मांड के निर्माण से पहले और उसके विनाश के बाद भी रहता है।
- शिवलिंग उनकी अनादि और निराकार स्थिति का प्रतीक है।
2. पौराणिक कथा: ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद
- शिव पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ।
- उस समय एक अग्नि स्तंभ (शिवलिंग) प्रकट हुआ। ब्रह्मा और विष्णु ने उसकी सीमा को जानने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे।
- तब उन्हें समझ आया कि शिव ही परम तत्व हैं, जो न जन्म लेते हैं, न मरते हैं।
3. आदियोगी और सृष्टि के आधार
- शिव को "आदियोगी" भी कहा जाता है, जो योग और ध्यान के प्रथम गुरु हैं।
- उनके योग स्वरूप को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत माना गया है।
4. शिव और शक्ति
- शिव और शक्ति (पार्वती) को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है।
- जब शक्ति साकार होती हैं, तो शिव अपनी दिव्यता को प्रकट करते हैं।
5. प्रकृति और चेतना का मेल
- दार्शनिक दृष्टिकोण से शिव को "चेतना" और शक्ति को "प्रकृति" कहा गया है।
- शिव का जन्म, चेतना और सृष्टि के मिलन का प्रतीक है।
शिव के जन्म का यह विवरण प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक सत्य को समझाने के लिए है। इसे सरल रूप में कहा जाए, तो शिव एक विचार हैं – ब्रह्मांड का अनादि सत्य।